स्वीकृति सहयोग का संकेत है, अपराध की स्वीकारोक्ति नहीं - पेनाल्टी लगाने पर कानूनी पक्ष
स्वीकृति सहयोग का संकेत है, अपराध की स्वीकारोक्ति नहीं - पेनाल्टी लगाने पर कानूनी पक्ष
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जीएसटी में ई वे बिल के प्रावधानों के तहत टैक्सपेयर्स से यह अपेक्षा की जाती है कि वे सभी आवश्यक दस्तावेज और प्रक्रियाओं का पूरी तरह से पालन करें। ड्राइवर रास्ते में सही टैक्स इनवॉइस और ई वे बिल को साथ रखे। हालांकि, कभी-कभी टैक्स इनवॉइस और ई-वे बिल के विवरणों में मामूली गलतियां हो सकती हैं, जो कि अनजाने में होती हैं और जिन्हें जा सकता है ।
इस ब्लॉग में हम एक ऐसे मामले पर चर्चा करेंगे, जहां करदाता ने एक टाइपिंग गलती को स्वीकार किया, लेकिन अधिकारी ने इसे अपराध की स्वीकारोक्ति मानते हुए सेक्शन १२९ में पेनाल्टी लगा दी।
क्या है मामला:
जीएसटी अधिकारी ने एक ट्रक को रोक लिया क्योंकि ड्राइवर द्वारा दिए गए टैक्स इनवॉइस और ई-वे बिल में टैक्स बिल की तारीख, जो ई-वे बिल में उल्लेखित थी, उसमें 1 दिन का अंतर था। कारण बताओ नोटिस जारी किया गया, जिसमें करदाता ने स्वीकार किया कि तारीखों में अंतर था लेकिन उसने इसे एक टाइपिंग गलती बताया। उन्होंने यह भी कहा कि यह गलती जीएसटी सर्कुलर 64 के अनुसार मामूली त्रुटि है और इसके लिए कोई जुर्माना नहीं लगाया जाना चाहिए।
साथ ही साथ, उन्होंने आगे यह भी बताया कि जब ट्रक को रोका गया था, तो उसके ड्राइवर ने तुरंत बिल और ई-वे बिल पेश कर दिया था और माल की फिजिकल वेरिफिकेशन में कोई विसंगति नहीं पाई गई। करदाता ने लगातार अधिकारी के साथ संपर्क बनाए रखा और अपनी गलती को स्वीकार करते हुए सहयोग का पूरा प्रयास किया।
ऑफिसर का रुख
हालाँकि ऑफिसर ने रेवेन्यू सेंट्रिक और प्री कंसीव्ड नोशन यानी पहले से स्थापित मानसिकता के साथ काम किया और टैक्सपेयर द्वारा अपनी गलती को मानना उसके अपराध का कनफेशन मान लिया और उसपर पेनाल्टी लगा दी। उन्होंने तर्क दिया कि करदाता ने अपनी गलती स्वीकार की, जिसका मतलब है कि वह दोषी हैं, और इसलिए पेनाल्टी आवश्यक है।
स्वीकृति और सहयोग का महत्व:
कानूनी दृष्टिकोण से, गलती जब वह इरादतन, जानबूझकर, न हो तो उसकी स्वीकृति को सहयोग के संकेत के रूप में देखा जाना चाहिए, न कि अपराध की स्वीकारोक्ति के रूप में। जब कोई करदाता गलती को स्वीकार करता है और उसे सुधारने के लिए तत्पर रहता है, तो यह कानून के प्रति सम्मान और पारदर्शिता, ईमानदारी, या खुलापन की भावना को दर्शाता है।
कानून और न्याय का बैलेंस
भले ही धारा 129 के तहत पेनाल्टी लगाने के लिए Mens Rea (दोषपूर्ण मंशा) की आवश्यकता नहीं है, इसका यह मतलब नहीं है कि अधिकारी बिना उचित कारण बताए पेनाल्टी लगा सकते हैं। अधिकारी को हर परिस्थिति में न्यायसंगत और तर्कसंगत रवैया अपनाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट का संदर्भ:
तुषारभाई रजनीकांतभाई शाह बनाम गुजरात राज्य, एसएलपी (सीआरएल) नंबर 14489/2023, तुषारभाई रजनीकांतभाई शाह बनाम कमल दयानी डायरी नंबर- 1106 – 2024 मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि किसी व्यक्ति की गलती की स्वीकृति को अपराध की स्वीकारोक्ति नहीं माना जा सकता, विशेष रूप से जब व्यक्ति ने जांच प्रक्रिया में सहयोग किया हो। इस मामले में, याचिकाकर्ता ने जांच में सहयोग किया था, फिर भी अधिकारी ने उसे हिरासत में लिया और बाद में उसे रिमांड पर लिया गया, जो कि न्यायसंगत नहीं था। न्यायालय ने यह माना कि स्वीकृति का अर्थ अपराध की स्वीकृति नहीं होता, बल्कि यह सहयोग का संकेत है ताकि जांच प्रक्रिया को लॉजिकल कनक्लूजन पर पहुँचाया जा सके।
निष्कर्ष:
स्वीकृति और सहयोग का मतलब यह नहीं है कि करदाता ने किसी अपराध को स्वीकार किया है। इसे केवल गलती सुधारने की मंशा के रूप में देखा जाना चाहिए। पेनाल्टी लगाना केवल तब उचित है जब यह साबित हो कि करदाता ने जानबूझकर कानून का उल्लंघन किया है। अधिकारी को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनका निर्णय तर्कसंगत और न्यायपूर्ण हो, न कि केवल रेवेन्यू हासिल करने की मंशा से प्रेरित हो।
इसलिए, जब कोई करदाता गलती को स्वीकार करता है और उसे सुधारने के लिए तैयार रहता है, तो इसे सहयोग के रूप में देखा जाना चाहिए और पेनाल्टी लगाने की बजाय इस पर विचार किया जाना चाहिए कि जांच प्रक्रिया लॉजिकल कनक्लूजन पर पहुँचे।
नोट: यह ब्लॉग तुषारभाई रजनीकांतभाई शाह बनाम कमल दयानी और अन्य मामले पर आधारित है, जहां स्वीकृति और सहयोग को अपराध की स्वीकारोक्ति के रूप में नहीं माना गया था। हालांकि तथ्य और कानून अलग थे, लेकिन इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के ऑब्जर्वेशन को यहां लागू किया जा सकता है।