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कैसे रहे Relax, चाहे नोटिस आये या अफसर

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कैसे रहे Relax, चाहे नोटिस आये या अफसर

केंद्र व राज्य सरकार के सूत्रों पर यकीन किया जाये तो जीएसटी के लागू होने के बाद टैक्स कलेक्शन में गत वर्षों की तुलना में कमी दिखायी दे रही है। कुछ लोगों का मानना है कि नोटबंदी और जीएसटी की वजह से इसपर असर पड़ा है | लेकिन एक दूसरे वर्ग का मानना है कि टैक्स कलेक्शन के कम होने की एक मुख्य वजह रास्ते में गाड़ियों की धरपकड़ का न होना और सरकारी अफसरों द्वारा स्क्रूटनी, ऑडिट और इनवेस्टिगेशन में कमी आना शामिल है। कुछ लोग ऐसे भी है जो कंप्लायेंस से तो परहेज कर ही रहे हैं वरन रिटर्न भी फाइल नहीं कर रहे हैं और न ही ही पूरे टैक्स का भुगतान ही कर रहे हैं। 
वित्त मंत्रालय ने 27/02/2018 को एक ट्वीट किया जिसमे यह बताया गया है कि 69% रजिस्टर्ड व्यापारी ही केवल जनवरी माह का फॉर्म 3B फाइल किया है जबकि हम सभी जानते है की फॉर्म 3B हर उस रजिस्टर्ड व्यापारी को फाइल करना है जो कम्पोजीशन स्कीम में नहीं है और तब भी जब उसकी रिटर्न में कोई देनदारी नहीं है | यानि जो दूसरा वर्ग है, वो भी गलत तो नहीं हो सकता क्योंकि फॉर्म 3B फाइल करना बिल्कुल भी कठिन नहीं है|

Particulars

Figures in Lacs

Registered under GST

103.00

Registered under Composition Scheme

17.65

Balance

85.35

Form 3B Filed

57.78

Number of Non Filer of form 3B

27.57

वित्त मंत्रालय ने 27/02/2018 को जो ट्वीट किया है, उसकी एक झलक:

कहते है कि अगर कोई गलत कर रहा है और उस पर अगर कानून कार्यवाही नहीं होती है तो जो वर्ग ईमानदारी से कंप्लायंस कर रहा है, रिटर्न फाइल कर रहा है, टैक्स का भुगतान कर रहा है, वो भी डिमोटिवेट होता है और उनमें से भी कुछ उन लोगो को फॉलो करने की सोचने लगते है या करने लगते है जो गलत है और जब उनसे बात होती है तो वो कहते है,  भाई! हमारा भी परिवार है, हमारे भी खर्चे है, हमें भी व्यापार करना है आदि | 

लेकिन मेरा मानना है की उन लोगो को इससे बचना चाहिए क्योंकि कम्प्यूटर तो छोड़िये, सरकार अब बिग डाटा, डाटा एनालिटिक्स आदि का इस्तेमाल कर डाटा से बात कर रही है | जीएसटी में मैचिंग प्रिंसिपल वैसे भी है तो हमें जो कम्प्लाइंस कर रहे है, दूसरा वर्ग जो नहीं कर रहा है, उसके बारे में नहीं सोचना चाहिए क्योंकि उनका पकड़ा जाना आज नहीं तो कल होना ही है और अगर नहीं भी होता है तो वो व्यापार को बहुत आगे तक नहीं ले जा सकते है और हर समय, बोले या न बोलें, टेंशन में तो रहते ही है | अफसर उनके पड़ोस में अगर आ जाये तो शटर उनकी दूकान का गिर जाता है | यह भी तो शर्मिंदगी का सबब ही है |

आपको यह भी मानना होगा कि सरकार नोटबंदी और जीएसटी की वजह से कारोबार पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव से व्यापारियों को उबारने का काम लगातार कर रही है लेकिन जो कारोबारी कंप्लायेंस नहीं कर रहे हैं उनके लिए सरकार स्क्रूटनी, ऑडिट व इनवेस्टिगेशन की नोटिस को भेजना भी शुरू कर दिया है। अफसरों का इनवेस्टिगेशन के लिए आना भी शुरू हो गया है। ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स ने शनिवार (24/02/2018) को एक अप्रैल 2018 से ई-वे बिल को फिर से लागू करने की फिर से सिफारिश भी की है और रिटर्न के सरलीकरण के मुद्दे पर इसमें आम सहमति अब तक नहीं बना पायी है।

नोटिस या अफसर किसी के यहाँ भी आ सकते है, उनके यहाँ भी जो कंप्लायंस नहीं करते है और उनके यहाँ भी जो कंप्लायंस करते है क्योंकि नोटिस या अफसर आने के आधार कई होते है और नोटिस या अफसर आने पर परेशानी स्वाभाविक है। लेकिन निम्नलिखित कुछ कदम यदि पहले से, अभी से उठाये जाये तो टेंशन भी घटेगा और खर्च भी और डिपार्टमेंटल प्रोसीडिंग भी कायदे से सलट जायेगी |

1. अगर आपने अब तक फॉर्म GSTR- 3B और GSTR-1 फाइल नहीं किया है तो इसे तत्काल कर दें। साथ ही फॉर्म GSTR- 3B और GSTR-1 बैक कैलकुलेशन शीट तैयार रख्रें और उसमें दिए गये विवरण को जरूरत पड़ने साबित करने के लिए दस्तावेज भी तैयार रखें।
2. आपने इनपुट क्रेडिट का जो क्लेम किया है उसकी इनॉयस की मूल प्रति को साथ रखना होगा। इसके अलावा वेंडर का नाम और उसका पता रजिस्टर में दर्ज होना चाहिए। साथ ही बिल का पेमेंट कब किया गया है उसका भी हिसाब रखें। इनपुट क्रेडिट लेने में भी कुछ बाध्याताएं या फिर राइडर होते हैं जिनका उल्लेख सीजीएसटी की धारा 17 में है और नियम 42 और 43 में है| साथ ही साथ कई सारे ऐसे नोटिफिकेशन भी है, जैसे के रेस्टोरेंट, ट्रांसपोर्ट आदि के लिए जहाँ यह बताया गया है इनपुट क्रेडिट नहीं मिलेगा, मिलेगा तो क्या करना होगा आदि | आपको अपने व्यापार से सम्बंधित इनपुट क्रेडिट के नियमो को जानना चाहिए और जो नहीं मिलना है उसे रिवर्स करना चाहिए और जितना मिलना है, उतना ही लेना चाहिये|
3. अगर आपकी सप्लाई exempted या non-taxable सप्लाई है तो उस गुड्स की बिक्री या आवाजाही बिल ऑफ सप्लाई के माध्यम से ही करनी होती है | साथ ही साथ किस आधार पर टैक्स नहीं लग रहा है, उससे सम्बंधित नियम की जानकारी को भी जानकर रखे और हो सके तो उसका प्रिंट आउट | 
दूसरी तरफ अगर भेजा जा रहा माल सप्लाई नहीं है, जैसे कि जॉबवर्क, अप्रूवल, एक्सहिबीशन पर गुड्स को भेजना तो उसे डिलीवरी चालान के जरिए ही भेजा जाना चाहिए । डिलीवरी चालान का विवरण GSTR-1 तो जाता ही है और अगर जॉब वर्क वाला डिलीवरी चालान है, तो उसका विस्तृत विवरण ITC-04 में देना होता है । अगर आपने नहीं दिया है और रिटर्न फाइल कर दिया है तो अपने रेंज ऑफिसर को सूचित करें लेकिन अगर रिटर्न फाइल नहीं किया है तो रिटर्न में दे देवे |
4. अपने बुक्स ऑफ एकाउंट्स को प्रिंसिपल प्लेस ऑफ बिजनेस पर रखें और एडिशनल प्लेस ऑफ बिजनेस पर वहां से संबंधित एकाउंट्स और दस्तावेज रखें।
5. स्टॉक रजिस्टर से फिजिकल स्टॉक का मिलान कर लें और अगर उसमें फर्क पाते हैं तो उससे संबंधित एंट्री कर लें और अगर क्रेडिट का रिवर्स या टैक्स का भुगतान किया जाना है तो वह भी कर दें। गुड्स आपके रजिस्टर्ड स्थान पर रहना चाहिए न कि अनरजिस्टर्ड जगह या फिर ट्रांस्पोर्टर के गोदाम में। 
6. GSTR-1 में डॉक्यूमेंट टेबल में जिन दस्तावेजों का जिक्र किया गया है उसका मिलान जरूर कर लें। 
7. TRAN-1 या ITC--01 में अगर इनपुट क्रेडिट लिया गया है तो संबंधित दस्तावेजों की फाइल को अलग से तैयार रखें। 
8. पिछले वर्ष की समान अवधि की बिक्री का इस वर्ष के साथ तुलनात्मक अध्ययन कर लें और अगर उसे कम रख रहे हैं तो उसकी वजह जरूर तैयार रखें। 
9. 9(3) का रिवर्स चार्ज आज भी लागू है जबकि 9(4) को गत वर्ष 13 अक्तूबर से स्थगित कर दिया गया है। अगर आपके पास जीएसटी में रजिस्टर्ड वेंडर का इनवॉयस नहीं है तो आपको टैक्स इनवॉयस बनाना होगा। 
10. अगर आपकी सप्लाई या खरीददारी एक्सपोर्ट, इम्पोर्ट या फिर SEZ आदि से है तो चाहे जीएसटी हो या फिर कस्टम या DGFT से सम्बंधित दस्तावेजों को एक जगह रख ले और उनका आपस में मिलान कर ले | अगर आप गुड्स को इम्पोर्ट करते है तो इम्पोर्ट ड्यूटी का भुगतान करते ही है और अगर इम्पोर्ट ऑफ़ सर्विस है तो रिवर्स चार्ज में जीएसटी की देनदारी भी आ सकती है | अगर आप एक्सपोर्ट करते है तो आपको रिफंड मिल सकता है और आपने फाइल नहीं किया है तो फाइल करे और किया है तो सम्बंधित दस्तावेज की फाइल अलग से बनाकर जरूर रखे |
11. गुड्स अगर आप एक राज्य से दूसरे राज्य में गुड्स भेज रहे है तो उसके साथ टैक्स इनवॉइस / बिल ऑफ़ सप्लाई / डिलीवरी चालान जो लागू होता है, उसे तो देना ही है और साथ ही साथ जिस राज्य में गुड्स भेजा रहा है, वहां के ई वे बिल से सम्बंधित नियम कानून को जानकर जो दस्तावेज लगते है, उसे जरूर गाड़ी चालक की दे | 
12. गुड्स का इनपुट क्रेडिट देने के दौरान अफसर आपसे गुड्स को रिसीव करने का प्रमाण भी मांग सकता है। इसलिए ट्रांसपोर्टर के कंसाइनमेंट नोट की कॉपी या संबंधित दस्तावेज को जरूर साथ रखें।

 

साथ ही साथ यह हमेशा याद रखें कि आपके पास नोटिस आती है या अफसर के कदम आपके ऑफिस में पड़ते हैं या फिर रास्ते में आपकी गा़ड़ी को रोक लिया जाता है तो घबराने से बात नहीं बनेगी | टैक्स की दुनिया में शायद ही ऐसी कोई समस्या है जिसका समाधान संभव नहीं | बस जरुरत है सही मार्गदर्शक को चुनने की और वो आपके कंसलटेंट से बेहतर शायद ही कोई हो सकता है | ऐसी सूरत में अपने कंसलटेंट के साथ सलाह जरूर करें। इसके बावजूद भी यदि आपको जरूरत महसूस होती है तो अपने GST DOST से 9088882000 पर बात कर सकते हैं।