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कैसे गुजराती कपड़ा व्यापारी की छोटी सी गलती उस पर पड़ गयी भारी

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हमें  लगभग हर दूसरे दिन जीएसटी के संबंध में बहुत सी अनकही कहानियाँ सुनने को मिलती हैं, लेकिन इस किस्से ने मेरा ध्यान आकर्षित किया। कभी-कभी हमें पता नहीं होता है कि जीवन के अगले मोड़ पर क्या होने वाला है, और अनजाने में हुई छोटी सी गलती बड़ी परेशानी का सबब बन जाती है। 
 
इसी तरह, इस कहानी को जब आप पढ़ेंगे तो आपको पता चलेगा कि "ऐसा पहले होता रहा है, अपने साथ भी ऐसा ही होगा" जैसी उम्मीद को रख लेने की वजह ने गुजरात में रहने वाले एक बुजुर्ग कपडा मैन्युफैक्चरर को कैसे बहुत बड़ी मुश्किल में डाल दिया। ऐसा और किसी के साथ न हो, इसलिए मैंने इस अनुभव को आपके साथ साझा करने का फैसला किया ताकि आपके साथ ऐसा न हो...
 
यह कहानी गुजरात के एक बुजुर्ग कपड़ा निर्माता के बारे में है जिन्हें टैक्स चोरी के संदेह में जीएसटी विभाग द्वारा बुलाया गया था। वृद्ध व्यक्ति का हाल ही में मोतियाबिंद का ऑपरेशन हुआ था और डॉक्टरों ने उन्हें घर पर रहकर कुछ दिन आराम करने की सलाह दी थी। फिर कोरोनोवायरस महामारी की दहशत और उसके बाद गृह मंत्रालय की एडवाइजरी आई कि, बच्चे, बुजुर्ग, बीमार घर पर ही रहें.. तो बुजुर्ग ने सोचा कि, अगली तारीख तो मिलेगी ही, तब वह जीएसटी अधिकारियों के सामने पेश हो जायेंगे। इसलिए वह नहीं गये, लेकिन एक अच्छी बात यह थी कि उन्होंने अफसर को अपने न आने की जानकारी, वजह के साथ बतायी और साथ में डॉक्टर का प्रेस्क्रिप्शन भी अटैच किया था।
 
आमतौर पर ऐसी हालत में अफसर दोबारा मौका देते हैं। लेकिन पता नहीं इनके मामले में ऐसा क्या हुआ कि अफसर ने लीक से हटकर वो कर दिया जो सुना नहीं जाता और कोई कहेगा तो विश्वास भी नहीं होगा।
 
अफसर ने बुजुर्ग व्यापारी को DRC 01A में इंटिमेशन दिया जिसमे उन्होने तक़रीबन 70 लाख रूपए की डिमांड इंटरेस्ट,पेनाल्टी के अलावा बना दी | अफसर यही तक नहीं रुके, बल्कि उन्होंने वृद्ध के घर और फैक्ट्री के प्रोविशनल अटैचमेंट का आर्डर भी पास कर दिया। 

बात बनती न देख बुजुर्ग व्यापारी ने इन्साफ की गुहार लगते हुए गुजरात उच्च न्यायालय में अपील की। दोनों पक्षों को सुनने के बाद माननीय न्यायाधीश ने DRC 01A  के इंटिमेशन को रद्द कर दिया और अफसर को उस बुजुर्ग व्यापारी को मौका देने को कहा ताकि वो अपनी बात रख सकें। यह जरुरी भी होता है कि किसी को दंड देने के पहले, उसे मौका दिया जाये।  हमारे संविधान में तो मरते हुए व्यक्ति से उसकी अंतिम इच्छा तक पूछी जाती है। हालांकि अदालत के फैसले पर ध्यान देने की जरूरत है। फैसला आपको परेशान कर सकता है और हमें अधिक सावधान रहने को कहता है:
 
अदालत का निर्देश था :
 
(१) बुजुर्ग व्यापारी को उसी अफसर के सामने ही पेश होना होगा, अपनी सफाई देनी होगी, जिसके खिलाफ उन्होंने कुछ दिन पहले मुकदमा दायर किया था। 
 
(२) प्रोविशनल अटैचमेंट के आर्डर को निरस्त नहीं किया गया। 

जब कोरोना की दहशत चारो ओर है, सरकारी अफसरों के ऐसे कदम बिज़नेस कम्यूनिटी में सरकार के प्रति अविश्वास पैदा करते हैं और इसलिए मैं भारत सरकार से अपील करना चाहूंगा कि ऐसे मामलों में संज्ञान लें और डिपार्टमेंट को दिशा निर्देश दे जिससे भय मुक्त वातावरण में बिजनेसमैन काम कर सके। 

लेकिन यह मामला हम सभी के लिए एक आंख खोलने वाला भी है। आपको समझना होगा कि अफसर अप्रत्याशित कदम भी उठा सकते हैं। आपको अपने जीवन में अगर इस तरह की समस्या से दो चार नहीं होना है, तो मेरी सलाह रहेगी कि किसी भी मामले में, चाहे वो जीएसटी हो या और कुछ और...जब भी आपको समन मिले, तो आप अफसर के सामने जरूर प्रेजेंट हों। 

आप जान लें कि जीएसटी अफसर यूँ ही समन इश्यू नहीं करते हैं। जीएसटी विभाग द्वारा समन करना एक गंभीर मामला है, लेकिन अगर आपने कंप्लायंस किया है, इरादतन टैक्स चोरी नहीं की है, समुचित रिकार्ड्स और दस्तावेज हैं तो अधिक चिंता करने की जरुरत नहीं है। हालांकि ऐसे मामले में जानकार जीएसटी कंसलटेंट, जो दोस्त की तरह व्यवहार करते हैं, उनसे सलाह लेना और उन्हें साथ रखने से परेशानी को काफी हद तक कम किया  जा सकता है। 
 
 
आपको मामले की गम्भीरता समझ में आये, इसलिए हमने इसे कहानी का रूप दिया है और कुछ कपोल कल्पना का सहारा भी लिया है। हालांकि जजमेंट की कॉपी भी रिफरेन्स के लिए आपको दी है।
 
ब्लॉगर दोस्त विकाश धनानिया  से आप संपर्क कर सकते है -     vikash@gstdost.com 
 
 
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