"नीरव मोदी की राह पर चलें तो जीएसटी में भी है खतरे ही खतरे"
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नीरव मोदी की राह पर चलें तो जीएसटी में भी है खतरे ही खतरे
कई बार ऐसा लग सकता है कि ईमानदारी की रोटी से चतुराई के पकवान अधिक स्वादिष्ट होते हैं। जल्द लाभ कमाने की उम्मीद कई बार गलत रास्ते पर भी धकेल सकती है। लेकिन यह याद रखना होगा कि आखिरकार इसका नतीजा खुशनुमा या फिर कहें सुखदायक नहीं होता। नीरव मोदी की कहानी भी जुदा नहीं है। बैंक की प्रणाली में खामियों को ढूंढ कर उसका करीब 11,400 करोड़ रुपये का फायदा या फिर कहें घपला करने का आरोप नीरव मोदी पर लगा है। भले ही अरबों की दौलत का अंबार नीरव मोदी के कदमों में लगा हो, आज स्थिति यह है कि अपना ही देश छोड़ने पर उन्हें मजबूर होना पड़ा है। जांच एजेंसियों से बचने के लिए वह लोगों के सामने आना तक अफोर्ड नहीं कर सकते। पास में अरबों की दौलत भले हो, उसे भोगना फिलहाल दूर की ही कौड़ी लगती है।
ऐसा ही जीएसटी के साथ भी है। जीएसटी के नियमों का कंप्लायंस न करने में हो सकता है आपको लगता हो कि इससे आप फायदे में रहेंगे। आप अपने दूसरे व्यापारी प्रतिस्पर्धी के मुकाबले ज़्यादा गुड्स बेच पायेंगे, ज़्यादा मुनाफा का पायेंगे | साथ ही इस फायदे को भोग भी सकेंगे। लेकिन हकीकत ऐसी नहीं।
जाने क्यों ?
जीएसटी मैचिंग प्रिंसिपल पर तो आधारित है ही लेकिन साथ ही साथ बहुत सारे और भी राइडर्स भी है, जैसे कि ई-वे-बिल, ऑनलाइन रिटर्न फाइल होना, बिना टैक्स जमा किये रिटर्न का फाइल नहीं होना, अगर आपका वेंडर आपकी सप्लाई का जीएसटी जमा नहीं करता है तो इनपुट क्रेडिट का नहीं मिलना, पुराने रिटर्न को फाइल किये बिना अगले टैक्स पीरियड का रिटर्न जमा नहीं होना, एनुअल रिटर्न, असेसमेंट, ऑडिट, इन्वेस्टीगेशन, वेरिफिफेक्शन आदि के प्रावधानों का होना | इसके अलावा सरकार डाटा वेयरहाउसिंग और बिग डाटा एनालिटिक्स का भी साथ ले रही है यानि टेक्नोलॉजी का भरपूर इस्तेमाल कर रही है और इसे हम और आप अनुभव करते भी होंगे जब भी सरकार या उनके नुमाइंदे बात करते है और वो डाटा पर आधारित होते है | या यूँ हम कह सकते है कि जीएसटी में एंट्रीज केवल आप पर ही निर्भर नहीं होती। यह समूचा एक चेन बना हुआ है। आपकी एंट्री का लाभ दूसरे पा सकेंगे और दूसरे की एंट्री का लाभ आप। इसके अलावा एंट्रीज कनेक्टेड भी होती हैं।
क्या जानें ?
लिहाजा यदि कोई सोचता हैं कि कंप्लायंस नहीं करेंगे या कोई तिकड़म लगायेंगे तो इससे बच जायेंगे तो यह उसकी गलतफहमी है। आज नहीं तो कल पकड़ में आने की संभावना पूरी है |
नीरव मोदी के मामले में भी देर से ही सही प्रबंधन को धांधली के बारे में पता चल गया। वैसे ही कोई यदि जीएसटी से जुड़े नियमों का कंप्लायेंस नहीं करते हैं तो आखिरकार वह पकड़ में आकर रहेगा। हो सकता है कि इसमें थोड़ा वक्त लग जाये लेकिन टेक्नोलॉजी धीरे-धीरे और तगड़ी होती जा रही है। एक बार पकड़ में आने पर जहां सौ तरह की कारोबारी और मानसिक समस्याएं होंगी वहीं नेकनामी के खत्म होने में भी वक्त नहीं लगेगा। इसलिए यदि किसी को लगता है कि टैक्स या जीएसटी का कंप्लायेंस न करके कोई अधिक कमाई कर रहे हैं तो याद रखिए, पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त।
"जहाँ से अपने ना दिखे_
वो ऊंचाई किस काम की"
जीएसटी के कंप्लायेंस के संबंध में आप क्या सोचते हैं, इसे कमेंट बॉक्स में ज़रूर लिखें। आपकी राय हमारे लिए बहुत कीमती है।
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