पहले ई-वे बिल के वैध होने पर दूसरे ई-वे बिल के लिए वाहन को रोका नहीं जा सकता
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नमस्कार दोस्त!
कलकत्ता हाइकोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि पहला ई-वे बिल अगर वैध है तो वाहन को दूसरे ई-वे बिल के लिए रोका नहीं जा सकता। हाइकोर्ट के न्यायाधीश टीएस शिवाज्ञानम और न्यायाधीश हिरणमय भट्टाचार्य ने कहा है कि जीएसटी डिपार्टमेंट किसी भी वाहन को दूसरे ई-वे बिल की नामौजूदगी में रोककर नहीं रखा जा सकता अगर वाहन को रोके जाने पर पहला ई-वे बिल वैध है।
क्या है मामला
जीएसटी डिपार्टमेंट बनाम अशोक कुमार सुरेका के मामले की सुनवाई में अदालत में पहुंचे असेसी का कहना था कि उसके वाहन को माल के साथ रोके रखना और टैक्स और जुर्माने की मांग सही नहीं है। ई-वे बिल जो मालवाही वाहन में ले जाया जा रहा था उसकी अवधि 2019 में आठ सितंबर की आधी रात को समाप्त हुई और माल का परिवहन नौ सितंबर 2019 को किया जा रहा था। वाहन को दोपहर 1.30 बजे रोका गया था। असेसी का कहना था कि मालवाही वाहन रास्ते में बिगड़ गया था और इसके लिए विलंब हुआ। टैक्स चोरी का उसका कोई इरादा नहीं था। डिपार्टमेंट की ओर से सिंगल बेंच में अपील फाइल की गयी थी। सिंगल बेंच ने रिट याचिका का निपटारा करते हुए 2019 में 11 सितंबर को दिये गये निर्देश को खारिज किया। अदालत ने कहा कि असेसी को पेनाल्टी और टैक्स का रिफंड मिलना चाहिए। डिपार्टमेंट की ओर से इसके बाद डिवीजन बेंच में याचिका दायर की गयी। डिपार्टमेंट का कहना था कि न तो अपीलेट ऑथोरिटी के समक्ष न ही रिट याचिका में असेसी ने वाहन के बिगड़ जाने का जिक्र किया था। असेसी ने ई-वे बिल की वैधता समाप्त होने के बाद उसे एक्सटेंड न करने के कारण का जिक्र नहीं किया गया था। हालांकि फिर स्पष्ट किया गया कि पहला ई-वे बिल जो सात को जारी किया गया था उसकी वैधता नौ सितंबर तक थी। लेकिन माल को दूसरे जगह ऑफलोड करने के लिए एक अलग ई-वे बिल जेनरेट किया गया जिसकी वैधता आठ सितंबर की आधी रात तक थी। उसके अगले दिन वाहन को पकड़ा गया था।
क्या कहना था अदालत का
अदालत का कहना था कि पहली ई-वे बिल जो सात सितंबर को जारी की गयी थी वह नौ सितंबर तक वैध थी। इसलिए दूसरे ई-वे बिल की नामौजूदगी में दुर्गापुर की टैक्स ऑथोरिटी वाहन को रोक नहीं सकती थी। इसलिए असेसी का जवाब स्वीकार करने योग्य है और इसे टैक्स चोरी की कोशिश का मामला नहीं कहा जा सकता। इसके अलावा अदालत का यह भी कहना था कि वाहन बिगड़ गया या नहीं इस विवाद में वह नहीं जाना चाहती। दोनों ही ई-वे बिल में गाड़ी और माल एक ही था। इससे स्पष्ट है कि टैक्स चोरी का इरादा नहीं था। अदालत ने टैक्स और पेनाल्टी को रिफंड करने का आदेश दिया।
हालांकि इस स्थिति में यह भी देखा जा रहा है कि यदि पीड़ित पक्ष ने पहले ही डिपार्टमेंट के सामने अपनी संपूर्ण स्थिति बयां की होती तो संभवत: यह नौबत नहीं आती। आमतौर पर देखा गया है कि तथ्यों को छिपाना कई बार घातक साबित हो सकता है।
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दोस्त विकास धनानिया
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